दा विन्सी का हल्ला भारत में ही क्यों?
दा विन्सी का हल्ला भारत में ही क्यों?
मेरी समझ से बाहर की बात है कि दा विन्सी कोड के विरोध का इतना हो हल्ला भारत में ही क्यों है? पूरे विस्व का ईसाई समाज जहॉ चुप बैठा है, भारत में गोवा तथा मुम्बई स्थित कुछ ईसाई संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। मजे की बात यह कि कुछ इस्लामिक संगठन ऊनके सुर में सुर मिला रहे हैं। टॉम हैन्क अभिनीत "दा विन्सी कोड" को भारत सरकार ने बैन न करने का फैसला किया है। यह फिल्म डैन ब्राउन द्वारा लिखित इसी नाम के बेस्टसेलिंग उपन्यास पर आधारित है। फिल्म ईसामसीह के जीवन पर आधारित है और यह लियोनोर्डो दा विन्सी द्वारा बनाई गई "लास्ट सपर" (अंतिम भोज) की पेंटिग में उनके द्वारा ईसामसीह के विवाहित होने का गूढ अर्थ छिपे होने की कल्पना के आधार पर आगे बढती है। फिल्म का एक पहलू ईसामसीह की वंशावली आज भी कहीं मौजूद होने की संभावना पर नजर दौडाता है। खैर, ये तो थी फिल्म की बात, पर कोई बतायेगा इसका इनता हो हल्ला भारत में ही क्यों? क्या भारत के अल्पसंख्यक कुछ ज्यादा ही संवेदनशील नही?
मेरी समझ से बाहर की बात है कि दा विन्सी कोड के विरोध का इतना हो हल्ला भारत में ही क्यों है? पूरे विस्व का ईसाई समाज जहॉ चुप बैठा है, भारत में गोवा तथा मुम्बई स्थित कुछ ईसाई संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। मजे की बात यह कि कुछ इस्लामिक संगठन ऊनके सुर में सुर मिला रहे हैं। टॉम हैन्क अभिनीत "दा विन्सी कोड" को भारत सरकार ने बैन न करने का फैसला किया है। यह फिल्म डैन ब्राउन द्वारा लिखित इसी नाम के बेस्टसेलिंग उपन्यास पर आधारित है। फिल्म ईसामसीह के जीवन पर आधारित है और यह लियोनोर्डो दा विन्सी द्वारा बनाई गई "लास्ट सपर" (अंतिम भोज) की पेंटिग में उनके द्वारा ईसामसीह के विवाहित होने का गूढ अर्थ छिपे होने की कल्पना के आधार पर आगे बढती है। फिल्म का एक पहलू ईसामसीह की वंशावली आज भी कहीं मौजूद होने की संभावना पर नजर दौडाता है। खैर, ये तो थी फिल्म की बात, पर कोई बतायेगा इसका इनता हो हल्ला भारत में ही क्यों? क्या भारत के अल्पसंख्यक कुछ ज्यादा ही संवेदनशील नही?
6 Comments:
कुछ भी बात हो, कभी हिंदू, तो कभी सिख, कभी मुसलमान तो कभी ईसाई, सबको मालूम हो गया कि भारत सरकार में दम नहीं है. छोटी छोटी बात पर "हमारे धर्म का अपमान हुआ है कह कर", सिनेमाघर तोड़ देते हैं, दँगा करते हैं, कारों में आग लगा देते हैं और गुँडों को रोकने की बजाय सरकार तुरंत यह या वह बैन करने का निर्णय कर लेती है. हाँ डाक्टर या वकील कोई धरना दे रहे हों या विरोध यात्रा कर रहे हों तो सरकार को कुछ डर नहीं लगता, पुलिस वालों की लाठियाँ और बंदूकें निकल आती हैं.
सच तो यह है कि हम भारतवासी परेशान है, अपनी अपनी परेशानियों से, कोई सरकार से परेशान हैियों है,कोई बीबी से, कोई मकानमालिक से, कोई बास से,तो कोई पुलिस से। किसी को स्कूल की टीचर प्रताड़ित करती है, किसी को कोई गुन्डा ब्लैकमेल करता है, कोई नेताओं के किए पर नाराज है तो कोई ज्याद्तियों का शिकार है, मतलब ये कि हर व्यक्ति नाराज है, और अपने मन की भड़ास नही निकाल पा रहा है। जब भड़ास का ज्वालामुखी अपनी हदें पार करने लगता है तब लोग अपनी भड़ास गैर जरुरी विषयों पर निकालते है, जैसे ये "दा विन्सी" वाला मुद्दा, इसलिए सभी लोग अपनी अपनी भड़ास निकाल रहे हैं।
वैसे भी हम हिन्दुस्तानी दूसरों के फटे मे टांग ज्यादा अड़ाते हैं,वो कहते नह है.. "तू कौन? खांम खां। क्यों पिले? बस ऐसे ही हॉबी है।"
"पूरे विश्व का ईसाई समाज जहॉ चुप बैठा है, भारत में गोवा तथा मुम्बई स्थित कुछ ईसाई संगठन इसका विरोध कर कर रहे हैं"
मेरी भी समझ में ये नहीं आया. शायद लोगों के पास समय ज्यादा है. किसी सार्थक कार्य में समय देने के बदले गैर ज़रूरी मुद्दों में हाथ डालने का कैसा औचित्य ?
किसी को यह खयाली पुलाव लगे तो लगे, हमारा मानना हैं कि भारत में चल रहे ईसाईकरण को इस जैसी फिल्मो से खतरा हैं और सारा हो हल्ला इसी डर से हो रहा हैं.
भारत एक 'पन्थ-निरपेक्ष' देश है। सबको शारे मचाने, तोड़-फ़ोड़ करने और मूढ़ता प्रदर्शित करने का पूरा हक़ है।
सुनील जी, जितेन्द्र जी, प्रत्यक्षा जी, संजय जी तथा प्रतीक जी,
आपकी बातें बिल्कुल सही हैं। हमारी कुण्ठायें निकालने का यह मूढतापूर्ण तरीका है।
शायद कभी तो सुधरेंगे हम।
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