Tuesday, June 06, 2006

और भी गम है जमाने में महाजन के सिवाय

मन में पूरा महाजन मसला कुछ सवाल छोड गया। पहला तो ये कि भारतीय मीडिया इस घटना के पीछे इस कदर पागल क्यों रहा? रंग दे बसंती के अंतिम दृश्य की तरह पुलिस ने एक टेलीविज़न मीडिया कम्पनी के स्टूडियो से बाकायदा साक्षात्कार देते हुए एक अभियुक्त को गिरफ्तार किया। तीन चार दिन से ये मुद्दा प्रिंट मीडिया हो या कोई और, हर जगह छाया रहा। क्या पूरा देश घटनाविहीन हो गया था? पर केवल मीडिया को दोष क्यों दें? वो तो एक अच्छे रसोइये की तरह वही परोसेगा जो हम खाना चाहते हैं। तो क्या हम इस तरह की सनसनीखेज खबरों के पीछे भागते देश के कुछ और जरूरी मुद्दों को नज़रअंदाज़ तो नही कर रहे? खबर अगर सनसनीखेज़ न हो तो क्या उसकी कोई "न्यूज़ वैल्यू" नही होती?

दूसरा सवाल है, कि जब देश का हर व्यक्ति (या ज्यादातर, इस कांड के बाद तो ऐसा ही लगता है) जानता है कि कोकेन या हेरोइन कैसे मिलता है? पुलिस क्यों नही जानती? जब इतनी आसानी से कोई भी व्यक्ति इसे हासिल कर सहता है, और कई संवैधानिक पदों पर बैठे लोग (जैसे अब कह लें कि अगर मोइत्रा इसे लेते थे, तो क्या स्वर्गीय महाजन साहब को पता नही रहा होगा) अगर ये जानते हैं, तो पूरी गुप्तचर सेवाओं से लैस हमारी पुलिस क्यों नही जान सकती? या फिर वो इन पर टूट पडने के लिये किसी ऐसे कांड की प्रतीक्षा करती रहती है।

3 Comments:

Blogger Ashish Shrivastava said...

भारतिय मीडीया "मनोहर कहानिया", "सत्यकथा" जैसे सस्ते चलताउ प्रकाशन का वीडीयो संसकरण हो गया है।
"सनसनी", "खौफ", "वारदात" जैसे कुछ उदाहरण है, ये अपराध को महिमामण्डीत करके दिखा रहे है।
राहुल महाजन कौन है ? वो हेरोईन ले या कोकीन मुझे क्या फर्क पढता है ?
मुझे फर्क पढता है, जब एन बरसात मे मुंबई मे गरीब बेघर होते है..
मुझे फर्क पढता है जब मेलघाट मे कुपोषण से बच्चे मरते है...
मुझे फर्क पढता है, जब जहरीली शराब से सैकडो गरीब तबके के लोग मरते है....
ये मीडीया इनका सीधा प्रसारण क्यों नही करता ?
एक अमीरजादे की बीगडी औलाद से मुझे कोई सहानुभूती नही है, और हो भी कैसे बाप की अस्थी विसर्जन के एक दिन पहले बेटा शराब पी रहा है, कोकीन ले रहा है...
देश का पूर्व प्रधानमंत्री इसे जवानी की गलती बता रहा है....
इन्हे तो नही मुझे शर्म आती है....

Tuesday, June 06, 2006 8:01:00 PM  
Blogger Manish Kumar said...

मीडिया में मसालेदार खबरों को पेश करने की होड़ सी लगी हुई है । ये उसी का नतीजा है ।

Wednesday, June 07, 2006 5:59:00 AM  
Blogger ई-छाया said...

आशीष भाई, बहुत सुंदर लिखा है आपने। बिगडी हुई औलादों से ज्यादा और भी बहुत से मुद्दे हैं देश में जो शायद ज्यादा जरूरी हैं, पर हाय मीडिया। अभी तक वही खबरें छाई हैं।
मनीष जी धन्यवाद।

Wednesday, June 07, 2006 11:50:00 AM  

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