और भी गम है जमाने में महाजन के सिवाय
मन में पूरा महाजन मसला कुछ सवाल छोड गया। पहला तो ये कि भारतीय मीडिया इस घटना के पीछे इस कदर पागल क्यों रहा? रंग दे बसंती के अंतिम दृश्य की तरह पुलिस ने एक टेलीविज़न मीडिया कम्पनी के स्टूडियो से बाकायदा साक्षात्कार देते हुए एक अभियुक्त को गिरफ्तार किया। तीन चार दिन से ये मुद्दा प्रिंट मीडिया हो या कोई और, हर जगह छाया रहा। क्या पूरा देश घटनाविहीन हो गया था? पर केवल मीडिया को दोष क्यों दें? वो तो एक अच्छे रसोइये की तरह वही परोसेगा जो हम खाना चाहते हैं। तो क्या हम इस तरह की सनसनीखेज खबरों के पीछे भागते देश के कुछ और जरूरी मुद्दों को नज़रअंदाज़ तो नही कर रहे? खबर अगर सनसनीखेज़ न हो तो क्या उसकी कोई "न्यूज़ वैल्यू" नही होती?
दूसरा सवाल है, कि जब देश का हर व्यक्ति (या ज्यादातर, इस कांड के बाद तो ऐसा ही लगता है) जानता है कि कोकेन या हेरोइन कैसे मिलता है? पुलिस क्यों नही जानती? जब इतनी आसानी से कोई भी व्यक्ति इसे हासिल कर सहता है, और कई संवैधानिक पदों पर बैठे लोग (जैसे अब कह लें कि अगर मोइत्रा इसे लेते थे, तो क्या स्वर्गीय महाजन साहब को पता नही रहा होगा) अगर ये जानते हैं, तो पूरी गुप्तचर सेवाओं से लैस हमारी पुलिस क्यों नही जान सकती? या फिर वो इन पर टूट पडने के लिये किसी ऐसे कांड की प्रतीक्षा करती रहती है।
दूसरा सवाल है, कि जब देश का हर व्यक्ति (या ज्यादातर, इस कांड के बाद तो ऐसा ही लगता है) जानता है कि कोकेन या हेरोइन कैसे मिलता है? पुलिस क्यों नही जानती? जब इतनी आसानी से कोई भी व्यक्ति इसे हासिल कर सहता है, और कई संवैधानिक पदों पर बैठे लोग (जैसे अब कह लें कि अगर मोइत्रा इसे लेते थे, तो क्या स्वर्गीय महाजन साहब को पता नही रहा होगा) अगर ये जानते हैं, तो पूरी गुप्तचर सेवाओं से लैस हमारी पुलिस क्यों नही जान सकती? या फिर वो इन पर टूट पडने के लिये किसी ऐसे कांड की प्रतीक्षा करती रहती है।