Friday, May 26, 2006

यूथ फॉर इक्वालिटी

मित्रों हमारा चिठ्ठा जगत आरक्षण के विषय पर मुखर है। पेश करता हूँ कुछ और कडियॉ जो आपको इस विषय पर कुछ और जानकारी देंगी।
जैसा कि आप जानते हैं आरक्षण विरोधी आँदोलन में भाग लेने वाला विराट छात्र समूह youth 4 equality कहलाता है। यह है उसकी आधिकारिक संजालस्थल की कडी।
इस आँदोलन के कुछ छायाचित्र यहॉ और यहॉ देखे जा सकते हैं।
यूथ फॉर इक्वालिटी का मुम्बई चैप्टर चिठ्ठा जगत में यहॉ मौजूद है।
कुछ और विचार यहॉ, या यहॉ पढे जा सकते हैं।
और पढिये प्रताप भानु मेहता का इंडियन एक्सप्रेस में छपा वो पत्र जो उन्होने ज्ञान आयोग से इस्तीफा देते हुए भारत के प्रधानमंत्री को लिखा है।
जय हिन्द।

Thursday, May 25, 2006

कुछ और विचारोत्तेजक लेख

मुझे मालूम नही आपमें से कितने लोगों ने रेडिफ डोट कोम पर यह विश्लेषण पढा है। बेहद विचारोत्तेजक तरीके से और बातों की गहराई में जाकर तथ्यों की पडताल की गई है। लेकिन अगर नही पढा तो तुरंत ही एवं जरूर पढें।

क्या ब्राह्मण हैं आज के दलित
कौन है असली दलित

और लिखने वाले या वाली हैं फ्रान्कोइस गाशियर (न कि कोई सवर्ण भारतीय, जैसा कि हमारे कुछ अज्ञानी मित्र कहते हैं कि पूरा मीडिया सवर्णों से भरा है। भगवान सबको तथ्यों के आरपार न्याय देख सकने की सद्बुद्धि दे और अन्याय को अन्याय कहने का साहस)

पेश हैं कुछ तस्वीरें और एक साक्षात्कार

पेश हैं कुछ तस्वीरें और एक साक्षात्कार
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क्या आपने माननीय मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह जी का करण थापर के साथ साक्षात्कार पढा है। नही तो जरूर पढिये, यह जानने के लिये कि हमारे ये नीति निर्धारक कितने जानकार हैं।
और पेश हैं कुछ तस्वीरें।
ये छात्र भारत के सबसे होनहार छात्रों में से हैं। भारत एक प्रजातांत्रिक देश है। विरोध प्रदर्शन का अधिकार क्या सबको नही। जब लोग एक फिल्म पर विरोध करते हैं तो सरकार की अन्यायपूर्ण नीतियों पर, या समानता के अधिकारों पर प्रदर्शन क्या गलत है। सात सप्ताह तक दिल्ली की अप्रैल मई की भीषण गरमी में चले इस विरोध की कुछ तस्वीरें।


समानता के अधिकारों पर प्रदर्शन



कल के चिकित्सक



संघर्ष के क्षण



लडाई जारी



ये भी देखिये



और ये भी



ये है क्लासरूम

Monday, May 22, 2006

क्या पा लिया मरकर उन्होने?

क्या पा लिया मरकर उन्होने?
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अभी तक मै बचता रहा आरक्षण पर लिखने से, पर भला पलायन भी किसी मर्ज की दवा है? क्यों भागता रहा इससे? कारण है कि इसका जिक्र आते ही याद आतें हैं कुछ वो मासूम जलते हुए चेहरे कुछ उन दोस्तों के जो कुछ ज्यादा ही भावुक थे। जो होनहार थे, पर ये न समझ सके कि भला आत्मदाह भी किसी समस्या का समाधान है। जिन्होने देखे होंगे हजारों सपने, मेरी तरह, या किसी भी साधारण छात्र की तरह, आसमान छूने के, पर भावुकता की एक आंधी ने उन स्वप्नीली आँखों को ही जला कर खाक कर दिया। जिन्होने सोचा था कि उनका बलिदान कुछ रंग लायेगा, कुछ होगा, जूँ रेंगेगी किसी के सर पर। वो कुछ दोस्त, जो बहुत ही अजीज थे मेरे। आँखों के लाल थे किसी मॉ के। किसी के घर का चिराग थे। उनकी रगों में भी बहता वो दूध था, जिनकी मुसकानें मासूम थीं। आज सोचता हूँ क्या पाया उन्होने? और किसको दोष दूँ मै? स्वार्थी राजनेताओं को? उन आरक्षण विरोधी छात्र नेताओं को, जिन्होने आत्मदाह करने का गलत उदाहरण पेश किया था, एक ऐसे देश में जहॉ इन्सानी जान की कीमत कुछ भी नही। क्या पा लिया मरकर उन्होने?

आरक्षण आज भी है, उल्टे बढ रहा है, ठीक राजनेताओं के भ्रष्टाचार और पदलोलुपता की तरह। वोट बैंक हमेशा रहेंगे। वर्ग संघर्ष भी हमेशा चलता रहेगा। राजनेता आते जाते रहेंगे। मुखौटे बदलते रहेंगे। शायद जीवन भर मै कभी भूल न सकूँ मॉ की उन चीखों को, या पिता की उन उदास आखों को। मेरे दोस्त होनहार थे, बस एक ही कमी थी, बहुत ज्यादा भावुक थे। आदर्शवादी थे। कुछ कर गुजरना चाहते थे। कर भी गुजरे। पर रास्ते गलत थे। चीख चीख कर कोई मेरे मन में पूछता है, क्या पा लिया मरकर उन्होने?

आखिर क्यों? दोस्तों रास्ते बहुत से हैं। जीवन अनमोल है, किसी का भी हो। सपने सबके बेशकीमती हैं। मॉयें सबकी बेहद वात्सल्यभरी हैं। सबके पिता चाहते हैं कि बेटा नाम रोशन करे, तरक्की करे, उन्नति करे, आसमान चूमे। मुझे हिसाब चाहिये, मेरे उन दोस्तों के प्राणों का, किससे मांगूँ? मुझे हिसाब चाहिये, उन जानों का जो हमने इस आरक्षण के कारण गवॉ दीं। मैने देखे हैं धनाढ्य नौकरीशुदा पिताओं के छात्रावासों में छात्रवृत्ति के बल पर मौज उडाते पुत्र, शराब पीते, सालोंसाल एक ही कक्षा में पडे रहने वाले वो अनसूचित जाति जनजाति के छात्रों को, जिन्हे दस दस साल में नकल कर कर के पास होने पर भी तुरंत नौकरियॉ मिलीं। याद आते हैं मेरे वो दोस्त जो आज भी भटक रहे हैं। मानता हूँ होते होंगे कुछ प्रतिभावान भी, पर कितने प्रतिशत? एक ही परिवार की तीन तीन पीढियों को देखा है आरक्षण के बल पर उच्च शिक्षा तथा नौकरियॉ पाते।
सवाल फिर आता है, मथता है मेरे मन को, क्या पा लिया मरकर उन्होने? क्या आपके पास इसका उत्तर है?