Friday, August 04, 2006

भारतीय मीडिया

कभी कभी समाचार पढ या सुनकर कोफ्त होती है। कल दो समाचार पढे या सुने, पहला समाचार सुना था बी बी सी हिंदी पर, धनबाद (पहले बिहार अब शायद झारखंड राज्य में) जिले में १०० से अधिक मजदूर जिंदा दफन हो गये हैं। ये मजदूर एक बंद पडी कोयला खदान में अवैध कोयला खनन करने गये थे, जहां बाढ के कारण तीन नदियों का पानी घुस आया। बताया गया कि १३५ फुट गहरी खदान में १०० फुट पानी भर गया है और बचाव दल ४८ घंटों बाद भी नही पंहुच सका है। बेचारे गरीब ग्रामीण, जिनके नाते रिश्तेदार अंदर फंस गये हैं, दो दिनों से बाहर जाकर चुपचाप बैठे रहते हैं, चमत्कार के इंतजार में।

दूसरा समाचार था टाइम्स आफ इंडिया में हरियाणा में गढ्ढे में गिरने के बाद बचाये गये प्रिंस महाराज को बीस लाख रुपये से भी अधिक का अनुदान मिलने और उनकी जिंदगी बदल जाने का।

अब दोनों ही मामलों की तुलना करिये। पहला मामला क्योंकि हमारे नाटकबाज मीडिया की नजरों में नही आया, क्योंकि दूर दराज का मामला है कोई दिल्ली के बगल में स्थित हरियाणा का मामला तो है नही कि लगातार कवरेज दिखा कर और लोगों से हजारों एस एम एस करवा कर उनकी भावनाओं को उठाकर लाखों रुपये कमाये जा सकें, तो अब तक कुछ भी नही हुआ है। मीडिया को भी मालूम करने की गरज नही कि क्या हो रहा है। और मीडिया नही, जन भावनायें नही, तो राजनेता या सेना को क्या पडी है परेशान होने की?

जहां प्रिंस मामले में मीडिया जरूरत से ज्यादा सक्रिय था, वहां इस नये मामले में बेहद निष्क्रिय। कुछ दिनों पहले सुनील जी के चिठ्ठे में मैने इफ्तिखार गिलानी के बारे में पढा और मीडिया ट्रायल के बारे में पढा। भारत के मीडिया को यह पहचानना ही होगा कि विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र के चौथे पायदान के रूप में वह कितनी बडी जिम्मेदारी को निभा रहा है। सस्ती लोकप्रियता और जनभावनाओं को हर किसी ऐरे गैरे मामले में उभारने से ज्यादा जरूरी हैं देश में और भी कई सवाल।

सच और बिंदास बोलूं तो प्रिंस मामला ऐसा तो कतई नही था कि सेना प्रमुख और प्रधानमंत्री को उसके बारे में बयान देना पडे। दो दो मुख्यमंत्री या पूर्व मुख्यमंत्री वहां मौजूद हों। जिस देश में इंसान की जान की कोई कीमत नही और सडक दुर्घटनाओं और मामूली लूटपाट के लिये लोगों को रोजमर्रा ही मार डाला जाता हो वहां एक बच्चे को बचाने तक तो ठीक था, पर बचाकर लाखों रुपये का दान देना कहां तक उचित था, यह तो आप ही बताइये। क्या भारतीय मीडिया को मुद्दों का अकाल पड गया है? और सौ के आसपास गांव वालों के किसी खदान के अंदर फंस जाने की खबर क्या किसी को अपील नही करती? आखिर क्यों?